हूल दिवस संथाल आदिवासियों द्वारा किए गए विद्रोह की गाथा है। यह शौर्य , पराक्रम और हमारे आदिवासियों की माटी के प्रति प्रेम का इतिहास है। महाजनों और अंग्रेजों के विरुद्ध हमारे पूर्वजों ने लोहा लिया और अपनें प्राणों की आहुति दे दी। इस लेख के माध्यम से आपको हूल दिवस की 10 महत्वपूर्ण बातें बताई जा रही हैं।
- हूल का अर्थ है ” क्रांति “
- 30 जून 1855 को संथाल आदिवासियों ने हूल क्रांति की शुरुवात की।
- साहेबगंज के भोगनाडीह गांव से संथालियों ने अंग्रेजों और महाजनों के विरुद्ध बिगुल फूंका।
- सिद्धू, कान्हु, चांद, भैरव, फूलो, झानो ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया।
- 400 गांवों के लोग इस क्रांति में शामिल हुए।
- 50000 लोगों ने अपनी माटी के लिए अंग्रेजों और महाजनों से लोहा लिया।
- 20000 आदिवासी भाई बहनों ने अपनें प्राणों को निछावर कर दिया।
- इतिहासकार 1857 की लड़ाई को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गई पहली क्रांति मानते है पर सच तो यह है कि 30 जून 1855 की क्रांति अंग्रेज़ों के खिलाफ पहली क्रांति है।
- तीर धनुष जैसे पारंपरिक हथियारों से अंग्रेज़ी हुकूमत को पराजित किया गया।
- हूल विद्रोह के कारण 26 जुलाई 1855 को सिद्धू कान्हू को भोगनाडीह में पेड़ से लटका कर फांसी दी गई।
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